✍️ संपादकीय
वोटर लिस्ट की सफाई या लोकतंत्र की सफाई ?
68.5 लाख नाम कटे, अब जवाबदेही किसकी तय होगी ?
बिहार की मतदाता सूची से चुनाव आयोग ने 68.5 लाख नाम हटा दिए। कारण वही पुराने—मृतक, प्रवासी और डुप्लीकेट मतदाता। आयोग इसे “सुधार” बता रहा है, लेकिन असली सवाल जनता पूछ रही है—इतने सालों तक ये नाम बने कैसे रहे? और इन्हें जोड़ने वालों पर कार्रवाई कब होगी ?
लोकतंत्र की रीढ़ वोटर लिस्ट है। अगर उसमें भी जवाबदेही नहीं तो चुनाव कितने भी निष्पक्ष करवा लो, जनता का भरोसा सरकारें नहीं जीत पाएंगी। यहां तक की अदालत ने आयोग को आदेश दे डाला कि हटाए गए नामों की सूची सार्वजनिक करो। अदालत ने भी माना कि मामला सिर्फ आंकड़ों का नहीं, जवाबदेही और पारदर्शिता का है ।
सरकारें वोट मांगने में माहिर हैं, पर सही वोटर सूची बनाने में फिसड्डी क्यों? अगर मतदाता सरकारों पर से अपना भरोसा खो देगा तो चुनाव लोकतंत्र का पर्व नहीं, महज़ एक तमाशा बनकर रह जाएगा जिसका खामियाजा आज कई देश आंतरिक युद्ध की लपटों में झुलस रहे हैं ।
अब वक्त है कि सिर्फ सफाई नहीं, सुधार भी हो।
जिम्मेदारी तय हो,
गड़बड़ी करने वाले अधिकारी दंडित हों,
और सरकारें यह समझें कि जनता को छलकर राज नहीं टिकता।
सरकारों और उनके सहयोगी दलों जनता का भरोसा जितना होगा तभी “वोटर लिस्ट सफाई” जनता को राम राज्य की ओर ले जाएगी, वरना यह सफाई जनता के लिए कई नए सवाल खड़े कर देगी ।
“ईमानदार की तलाश” सभी को, लेकिन मिला किसी को कोई नहीं..” अमरदेव
