संपादकीय :
नागपुर। आज जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अपने सौ वर्ष पूरे कर चुका है, यह अवसर केवल एक संगठन के इतिहास को जानने का नहीं, बल्कि उस विचारधारा और संकल्प को समझने का है । जिसने भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना को गहराई से बनाए रखने का कार्य किया ।

डॉ. हेडगेवार का जन्म और प्रारंभिक संघर्ष –
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को नागपुर में हुआ। साधारण परिवार से आने वाले हेडगेवार ने कठिनाइयों का सामना बचपन से ही किया। तेरह वर्ष की आयु में माता-पिता को खो देने के बाद भी उन्होंने शिक्षा जारी रखी। ब्रिटिश उपनिवेशिक शासन के विरुद्ध “वंदे मातरम” गाने पर विद्यालय से निष्कासन, उनके राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत व्यक्तित्व का प्रमाण था।
क्रांतिकारी विचार और शिक्षा
डॉ. हेडगेवार को उनके संरक्षक डॉ. बालकृष्ण मुंजे ने चिकित्सा की पढ़ाई के लिए कोलकाता भेजा। वहां रहते हुए उन्होंने उस समय के क्रांतिकारियों से निकटता बनाई और भारतमाता की स्वतंत्रता के संकल्प को और प्रखर किया। 1917 में नागपुर लौटने के बाद उन्होंने चिकित्सक के रूप में काम किया, लेकिन उनका ध्यान भारत की स्वतंत्रता आंदोलन में ही रहता
संघ की स्थापना –
1925 में विजयादशमी के दिन, नागपुर की धरती पर डॉ. हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना की। उनका उद्देश्य था – “संगठित और अनुशासित समाज का निर्माण, जहां प्रत्येक व्यक्ति राष्ट्र को सर्वोपरि माने।” उन्होंने शाखा पद्धति को अपनाया, जिसमें शारीरिक, मानसिक और नैतिक शिक्षा का समन्वय था।

डॉ. हेडगेवार के उत्तराधिकारी–
डॉ. हेडगेवार के बाद 1940 में संघ की जिम्मेदारी श्री माधव सदाशिव गोलवलकर ‘गुरुजी’ को मिली। गुरुजी ने संघ को वैचारिक और संगठनात्मक रूप से नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। उनके बाद श्री बालासाहेब देवरस, श्री के. एस. सुदर्शन, श्री मोहन भागवत जैसे सरसंघचालकों ने संघ के कार्य को निरंतर आगे बढ़ाया।
समाज और राष्ट्र निर्माण में भूमिका–
संघ ने केवल शाखाओं तक ही अपने कार्य को सीमित नहीं रखा। शिक्षा, सेवा, ग्रामीण उत्थान, महिला सशक्तिकरण, आदिवासी विकास, और स्वदेशी को बढ़ावा देने जैसे अनेक क्षेत्रों में संघ की प्रेरणा से हजारों संस्थाएं आज सक्रिय हैं। जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का उदय भी संघ की वैचारिक धारा से ही हुआ।
आज का संघ
आर एसएस (RSS)दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन माना जाता है। लगभग 60,000 से अधिक शाखाओं और लाखों स्वयंसेवकों के माध्यम से संघ ने भारतीय समाज में सेवा और संगठन की अद्वितीय मिसाल पेश की है। प्राकृतिक आपदाओं से लेकर सामाजिक संकट तक, संघ के कार्यकर्ता हर परिस्थिति में अग्रिम पंक्ति में देखे जाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार और उनके उत्तराधिकारियों को नमन कर चुके हैं। मोदी ने कहा है कि “डॉ. हेडगेवार ने जो बीज बोया था, वह आज विराट वटवृक्ष बन चुका है। यह संगठन राष्ट्रहित में निरंतर काम कर रहा है और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।”
आरएसएस का सौ वर्षों का यह सफर केवल संगठन का इतिहास नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति, सेवा और अनुशासन का प्रतीक है। डॉ. हेडगेवार का सपना था कि भारत आत्मविश्वासी और सशक्त बने। आज, जब संघ शताब्दी के द्वार पर खड़ा है, तो यह कहना उचित होगा कि यह यात्रा आने वाले सौ वर्षों के लिए भी नई प्रेरणा और संकल्प लेकर आगे बढ़ेगी।
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